Sunday, February 26, 2017

रेत के महल

बूँदो से झड़ गये पल, संग तेरे जो बिताए थे,
हार गया वो एहसास, जो तूने मुझे जिताए थे,

फ़िज़ाओं में आज भी महकता है वो मौसम,
जिसमें भीग-भीग कर, हमने दिल जलाए थे,

ठहरा है मन आज भी उसी चाँदनी में मेरा,
जन्नत के नज़ारे जहाँ तुमने मुझे दिखाए थे,

किस्मत ने भी रचा था, चक्रव्यूह कुछ ऐसा,
जब भी सागर में लगाए गोते, मोती पाए थे,

बच्चों सा नटखट था रिश्ता वो अपना 'साथी',

रेत के अनगिनत महल हमने जब बनाए थे ||

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